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हिंदी दिवस की कविताएं

कविता---प्रार्थना

 मन की कल्पनाओं से परे
तुम हो स्थिर ,शाँत ब्रह्म रुप
तुम सागर से गहरे,तुम नीले अंबर से भी अंतहीन
तुम चैन की बंसी बजाते
तुम्ही मुरली मनोहर

ज्ञान भी तुम ज्ञाता भी तुम
तुम ही अपना कारण
हम अज्ञानी मूढमति
कैसे जाने तुम्हारा विज्ञान

हे प्रभु,हे नाथ मेरे
भक्ति मुक्ति का संचार तुम ही
आया हूँ शरण तेरे
दे दो भक्ति का अखंड वरदान

डूब जाऊं मैं उसमें ,अब
नहीं चाहत संसार का
जीवन की नौका का
पतवार बन जाओ गिरधर मेरे..!

**
सीमा..✍️🎈
©®
#हिंदी दिवस प्रतियोगिता

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3 Comments

उत्तम, उत्कृष्ट, सर्वोत्तम,,, मूढ़मति होना चाहिए जी

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Swati chourasia

20-Sep-2022 07:54 PM

बहुत खूब 👌

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Achha likha hai 💐

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